आप Aloe Vera ki kheti करने के इच्छुक होंगे तभी आपने इस आर्टिकल को पढना शुरू किया है। एलोवेरा की खेती करना आपके लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हो सकता है। हर्बल और कॉस्मेटिक्स प्रोडक्ट में एलोवेरा का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है इसलिए एलोवेरा की मांग दिन प्रतिदिन बढती जा रही है। बाज़ार में हर्बल उत्पाद जैसे एलोवेरा फेस पैक,एलोवेरा face वाश, एलोवेरा जेल जैसे अनेकों प्रोडक्ट मार्किट में बिक रहे हैं इसके अलावा एलोवेरा का प्रयोग विभिन्न प्रकार की दवाओं में भी किया जाता है इसलिए दवा बनाने वाली कंपनियां एलोवेरा को तुरंत खरीद लेती हैं।
अगर आप जानना चाहते हैं कि Aloe Vera ki kheti kaise ki jaaye तो इस पोस्ट को पूरा अवश्य पढ़िए। इस लेख को पढने के बाद आपको सारे सवाल के जवाब मिल जायेंगे इस लेख में मैंने Aloe Vera ki kheti kaise kare के बारे में बताया है तो आइये जानते हैं।
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Aloe Vera ki Kheti क्या है?
एलोवेरा को घृत कुमारी या ग्वारपाठा भी कहा जाता है यह एक औषधीय पौधा है एलोवेरा पौधे की लम्बाई 60 से 100 सेमी तक होता है। एलोवेरा की पत्तियाँ भालाकार, मोटी व मांसल होती है जिसका कलर हरा होता है। एलोवेरा का फैलाव जमीन से निकलती शाखाओं द्वारा होता है पत्ती की चौड़ाई 1 से 3 इंच तक और मोटाई आधी इंच तक होती है।
एलोवेरा की खेती कब और कैसे करें ? (How to start aloe vera farming)
जलवायु और भूमि
एलोवेरा की खेती के लिए गर्म जलवायु सबसे उपयुक्त रहता है साथ ही शुष्क व उष्ण जलवायु में भी इसकी खेती की जा सकती है। एलोवेरा की खेती के लिए न्यूनतम वर्षा वाला क्षेत्र सबसे उपयुक्त रहता है। एलोवेरा के पौधे अत्यधिक संवेदनशील होते हैं इसलिए अधिक ठण्ड में इसकी बढ़वार रुक जाती है।
अगर एलोवेरा की खेती के लिए भूमि की बात की जाय तो रेतीली मिटटी सबसे उपयुक्त रहता है लेकिन एलोवेरा की खेती दोमट व काली मिटटी में भी की जा सकती है लेकिन इस तरह की मिटटी पर यदि आप एलोवेरा लगा रहे हैं तो ध्यान रहे की पानी नहीं ठहरना चाहिए साथ ही जमीन थोड़ी ऊंचाई पर हो तथा जलनिकासी की व्यवस्था भी हो। एलोवेरा की खेती के लिए मिटटी का P.H मान 8.5 होना चाहिए एलोवेरा की खेती सिंचित व असिंचित दोनों तरह की भूमि पर की जा सकती है।
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भूमि की तैयारी व खाद
जब वर्षा ऋतु शुरू होने वाली हो उससे पहले ही 20 से 30 सेंटीमीटर गहरी खेत की जुताई कर देनी चाहिए इसके बाद सड़े हुए गोबर की खाद को पर्याप्त मात्रा में खेत में डाल देना चाहिए इसके बाद खेत की अंतिम जुताई कर देनी चाहिए जिससे मिटटी में सड़े हुए गोबर की खाद अच्छी तरह से मिल जाये इसके बाद पौधे की बिजाई करनी चाहिए।
बुवाई का समय
एलोवेरा के पौधे को खेत में ठण्ड के मौसम में छोड़कर कभी भी लगा सकते हैं लेकिन एलोवेरा को खेत में लगाने का समय जुलाई से अगस्त का महीना सबसे सबसे उपयुक्त माना गया है इस महीने में एलोवेरा को लगाने से पौधों का growth बहुत तेजी से होता है।
बीज की मात्रा
एलोवेरा का पौधा जब 6-8′ का हो जाय तब इसकी बिजाई करनी चाहिए। एलोवेरा की बिजाई 3-4 महीने पुराने पौधे जो कि 4 से 5 पत्तों की होती है वो सबसे उपयुक्त रहते हैं। एक एकड़ भूमि के लिए 7000 से 10000 कंदों की जरुरत होती है। बिजाई के समय ये कम या ज्यादा भी हो सकते हैं क्योंकि ये निर्भर करता है की आपके कतार से कतार तथा पौध से पौध की दूरी कितनी है साथ ही पौध की संख्या भूमि की उर्वरता पर भी निर्भर करता है।
बीज प्राप्ति का स्थान
National Beuro of Plant Genetic Sources ने एलोइन तथा जेल का उत्पादन करने के लिए एलोवेरा की कई किस्मे विकसित की हैं एलोवेरा की उन्नत प्रजाति अकंचा/ए० एल०-1 को सीमैप लखनऊ ने विकसित किया है। पूर्व में जिन किसानो ने एलोवेरा की वाणिज्यिक खेती की है वे किसान एलोवेरा के जूस/जेल के उत्पादन में वृद्धि के लिए इन उन्नत किस्मों के लिए संपर्क कर सकते हैं।
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रोपण विधि
एलोवेरा के पौधे को रोपने के लिए खेत में खूड बनाये जाते हैं एक मीटर में दो लाइनें बनानी चाहिए तथा फिर एक मीटर जगह छोड़ कर फिर से दो लाइनें बनानी चाहिए। ऐसा इसलिए करना आवश्यक है जिससे एलोवेरा के पौधे लगाने के बाद आसानी से निराई गुड़ाई की जा सके। जब पौधा पुराना हो जाता है तो उसके बगल से नए पौधे निकलने शुरू हो जाते हैं जिसको अच्छी तरह से मिटटी से दबा देना चाहिए बरसात के मौसम में पुराने पौधे से नए पौधे निकलने लगते हैं जिनको निकालकर पौधरोपण कर सकते हैं।
सिंचाई व निराई गुड़ाई
बिजाई करने के बाद खेत में पानी लगा देना चाहिए। इसके बाद आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए इससे एलोवेरा में जेल की मात्रा बढ़ जाती है एलोवेरा की बिजाई के एक महीने के बाद निराई गुड़ाई करना चाहिए तथा समय -समय पर खर पतवार की निकालते रहना चाहिए एक साल में कम से कम 2 से 3 गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए।
फसल की कटाई व उपज
पहली फसल तैयार होने में कम से कम 10 से ग्यारह महीने लग जाते हैं इसके बाद एलोवेरा की पत्तियों को काट लेना चाहिए। पहली फसल के बाद आप एक साल में दो बार पत्तियों को काट सकते हैं। एक साल में एक एकड़ में 20,000 किलो ग्राम की उपज प्राप्त की जा सकती है।
एलो वेरा की खेती से होने वाले फायदे
- सिंचित व असिंचित भूमि में इसकी खेती की जा सकती है तथा किसी विशेष खर्चे के अच्छा लाभ कमाया जा सकता है।
- एलो वेरा की खेती के लिए किसी भी प्रकार की कीटनाशक, खाद व पानी की आवश्यकता नही होती है।
- एलो वेरा की पत्तियों को जानवर नहीं खाते हैं इसलिए इसका रखरखाव करने की आवश्यकता नहीं होती है।
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एलो वेरा की खेती में आने वाला खर्चा और होने वाला प्रॉफिट
Indian Council for Agriculture Research (ICAR) के मुताबिक एक हेक्टेअर में लगभग 27,500 रूपये का खर्च आता है। जिसका कुल खर्च मजदूरी, खाद व पानी मिलाकर 50 हजार हो जाता है तथा एक हेक्टेअर में लगभग 40 से 45 टन पत्तियाँ प्राप्त की जा सकती है। इन पत्तियों की कीमत 15 हजार से 25 हजार प्रति टन होता है। इस व्यवसाय में 6 गुना पैसा कमाया जा सकता है। एलोवेरा की पत्तियों को आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कंपनियां तथा सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री बनाने वाली कंपनियों को बेंचकर मुनाफा कमाया जा सकता है।
एलो वेरा की देखभाल
एलोवेरा को बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। अधिक पानी देने से एलोवेरा की जड़ें सड़ने लगती हैं और पौधा सूख जाता है। एलोवेरा में पानी तभी लगायें जब मिटटी लगभग दो इंच तक सूख चुकी हो इसके बाद पानी दें और ध्यान दें की जब छोटे-छोटे छिद्रों से पानी ऊपर निकलना शुरू हो जाये तो पानी देना बंद कर दें इसके बाद जब फिर से 2 इंच गहराई तक मिटटी सूख जाये तब पुनः पानी दें।
एलो वेरा खेती की ट्रेनिंग कहाँ से लें
अगर आप चाहते हैं की एलो वेरा की खेती करके अच्छी पैदावार ली जाय तो आपको इसकी ट्रेनिंग अवश्य लेनी चाहिए। आप केंद्रीय औषधीय एवं संगम पौधा (सीमैप) से ट्रेनिंग ले सकते हैं जिसका रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन होता है। ट्रेनिंग लेने के लिए आपको निर्धारित शुल्क जमा करना होगा इसके बाद आप ट्रेनिंग लेकर एलोवेरा की खेती आसानी से कर सकते हैं।
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nice jankari